एक नज़्म छिपी है धड़कन में , जो मिलो कभी तो सुनाएंगे
सुना के बीती बातें सारी, कभी तुमको भी रुलाएंगे
हम अक्षर अक्षर ज़िक्र हमारा शब्दों में बताएंगे
तुम भर लोगे आंखें अपनी जब याद तुम्हे हम आएंगे
जब करेंगे तुमसे दिल–ए–बयां तब झूठ मूठ मुस्काएँगे
उस नमी को पढ़कर आँखों की तुमको हम चुप कराएंगे
लगा के अपना ज़ोर दोबारा करतब तुम्हे दिखाएंगे
मुरझाये हुए उन होंठों को हम फिर से जरा हंसाएंगे
ना चली पवन तो ग़म नही, हम बाहों में झूला झुलाएँगे
बना के तकिया बाहों का,सिर पर हाथ फेर के सुलाएँगे
तुम ले लो चाहे जान तुम्हे पर कहकर खुदा बुलाएंगे
एक रोज़ लिखा कर तुझको अपना खुद ही हम मिट जाएंगे
By: कुणाल माहेश्वरी